मालवा के इतिहास पर निबंध

मालवा का नाम ‘मालव’ नामक जनजाति के आधार पर पड़ा और इसका उल्लेख सबसे पहले चौथी सदी में मिलता है जब सिकंदर ने मालव जाती को पराजित किया था मालव पहले राजपुताना और पंजाब की निवासी थी फिर सिकंदर से पराजित होने का बाद वे उज्जैन और उनके आस पास बस गए

मालवा का इतिहास

उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। आप को बता दे दशार्ण की राजधानी विदिशा थी और अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी। कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये।
मालवा पर लगभग 547 वर्षो तक भील राजाओ का शासन रहा था ,जिनमें प्रमुख राजा धन्ना भील थे

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प्राकृतिक रूप से मालवा क्षेत्र को उच्चभूमि माना जा सकता है, जिसकी समतल भूमि में थोड़ा झुकाव हैं। और अंदर का ज्यादातर भाग खुला है। काली मिट्टी की परत होने के कारण भूमि उपजाऊ है। यह जंगल, छोटे पठार व जल के प्राकृतिक स्रोत मिल जाते हैं।

मालवा को चार भागो में बता जा सकता है नर्मदा की घाटी (निमाड़ की समतल भूमि) ,केंद्रीय पठार क्षेत्र, उत्तर- पश्चिमी पठार क्षेत्र और उत्तर- पूर्वी पठार क्षेत्र (दशार्ण क्षेत्र)

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